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Showing posts from January, 2017

नपुंसकता के लक्षण और उपाय(What is Impotency)

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नपुंसकता (Impotency) परिचय:- इस रोग से पीड़ित पुरुष  संभोग क्रिया  ठीक प्रकार से नहीं कर पाता है तथा वह जल्द ही सैक्स के प्रति ठंडा हो जाता है। नपुसंकता रोग का सम्बंध ज्ञानेन्द्रियों से होता है। नपुसंकता रोग से पीड़ित व्यक्ति अपनी इस समस्या को किसी दूसरे व्यक्ति को बताने में संकोच करता है तथा वह इसके बारे में किसी को कुछ भी नहीं बता पाता है जिसके कारण उसका यह रोग और बढ़ता चला जाता है। नंपुसकता अधिक उम्र वाले व्यक्तियों में अधिक पाई जाती है। ऐसे व्यक्ति स्त्री की परछाई से भी घबराने लगते हैं तथा वे स्त्रियों के पास जाने से कतराने लगते हैं। नंपुसकता रोग दो प्रकार की होती है- पूर्ण रूप से नपुसंकताआंशिक नपुसंकता पूर्ण रूप से नपुसंकता-           इस रोग के कारण रोगी व्यक्ति का लिंग उत्तेजित नहीं होता है जिसके कारण वह  सैक्स क्रिया  बिल्कुल भी नहीं कर पाता है। आंशिक नामर्दी:-           जब यह रोग होता है तो पुरुष का लिंग संभोग क्रिया करने के लिए उत्तेजित होता है लेकिन संभोग शुरू करते ही उसकी उत्तेजना खत्म हो जाती है और लिंग शिथिल हो जाता है जिसके कारण रोगी व्यक्ति संभोग क्रिया का मजा नहीं ले पाता

नपुंसकता के लक्षण (Impotency)

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नपुंसकता (Impotency) परिचय:- इस रोग से पीड़ित पुरुष  संभोग क्रिया  ठीक प्रकार से नहीं कर पाता है तथा वह जल्द ही सैक्स के प्रति ठंडा हो जाता है। नपुसंकता रोग का सम्बंध ज्ञानेन्द्रियों से होता है। नपुसंकता रोग से पीड़ित व्यक्ति अपनी इस समस्या को किसी दूसरे व्यक्ति को बताने में संकोच करता है तथा वह इसके बारे में किसी को कुछ भी नहीं बता पाता है जिसके कारण उसका यह रोग और बढ़ता चला जाता है। नंपुसकता अधिक उम्र वाले व्यक्तियों में अधिक पाई जाती है। ऐसे व्यक्ति स्त्री की परछाई से भी घबराने लगते हैं तथा वे स्त्रियों के पास जाने से कतराने लगते हैं। नंपुसकता रोग दो प्रकार की होती है- पूर्ण रूप से नपुसंकताआंशिक नपुसंकता पूर्ण रूप से नपुसंकता-           इस रोग के कारण रोगी व्यक्ति का लिंग उत्तेजित नहीं होता है जिसके कारण वह  सैक्स क्रिया  बिल्कुल भी नहीं कर पाता है। आंशिक नामर्दी:-           जब यह रोग होता है तो पुरुष का लिंग संभोग क्रिया करने के लिए उत्तेजित होता है लेकिन संभोग शुरू करते ही उसकी उत्तेजना खत्म हो जाती है और लिंग शिथिल हो जाता है जिसके कारण रोगी व्यक्ति संभोग क्रिया का मजा नहीं ले पाता

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गठिया रोग के लक्षण और उसका ईलाज

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गठिया रोग के लक्षण और उसका घरेलू इलाज गठिया को आयुर्वेद में नामदिया कहा जाता है। आधुनिक चिकित्सा के अनुसार खून में यूरिक एसिड की अधिक मात्रा होने से गठिया रोग होता है। भोजन में शामिल खाघ पदार्थों के कारण जब शरीर में यूरिक एसिड अधिक मात्रा में बनता है तब गुर्दे उन्हें खत्म नहीं कर पाते और शरीर के अलग- अलग जोड़ों में में यूरेट क्रिस्टल जमा हो जाता है। और इसी वजह से जोड़ों में सूजन आने लगती है तथा उस सूजन में दर्द होता है।  गठिया रोग का कारण-   1 फास्ट फूड, जंक फूड और डिब्बाबंद खाना खाने से भी गठिया रोग हो सकता है।  2 ज्यादा गुस्सा आने की प्रवृति और ठंठ के दिनों में अधिक सोने की आदत से भी गठिया हो सकता है।  3 आलसी व्यक्ति जो खाना खाने के बाद श्रम नहीं करते हैं उन्हें भी गठिया की शिकायत हो सकती है।  4 वसायुक्त भोजन अधिक मात्रा में खाने से भी गठिया रोग हो सकता है।  5 जिन लोगों को अजीर्ण की समस्या रहती है और अधिक मात्रा में खाना खाते हैं, इस वजह से भी गठिया रोग हो सकता है।  6 वैदिक आयुर्वेद के अनुसार दूषित आम खाने की वजह से भी गठिया रोग हो सकता है।  गठिया रोग का लक्षण-   1 गठिया के लक्षण पैर

खूनी बावासीर और वीर्य की मात्रा बढ़ाने का उपाय

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गेंदा (Marigold) गेंदे की खूबसूरती और सुगंध सभी को आकर्षित करती है तथा इसके फूलों की मालाओं का अधिक मात्रा में प्रयोग आम जीवन में किया जाता है। इसका पौधा बरसात के मौसम में लगाया जाता है और इसकी खेती पूरे भारत में की जाती है। गेंदे के पौधे की ऊंचाई 80 से 120 सेमी तक होती है। गेंदे के पत्ते से 2 से 5 सेमी लंबे और कंगूरेदार होते हैं इन पत्तों को मसलने पर अच्छी खुशबू आती है। इसके फूल पीले तथा नारंगी रंग के होते हैं जो अक्टूबर-नवम्बर महीने में लगते हैं। ये आकार में अन्य के फूलों के मुकाबले बड़े और घने होते हैं। गेंदे अनेक जातियां होती है, जिनमें मखमली, जाफरे, हवशी, सुरनाई और हजार अधिक प्रचलित हैं।  विभिन्न रोगों में सहायक औषधि : 1. कान में दर्द: गेंदे की पत्ती का रस कान में डालने से कान का दर्द दूर हो जाता है। गेंदे के पत्तों का रस गर्म करके सहनीय (हल्का गर्म) अवस्था में पीड़ित कान में 2-3 बूंद की मात्रा में डालने से दर्द में तुरन्त आराम मिलता है। 2. आंखों के दर्द: गेंदे के पत्तों को पीसकर टिकियां बना लें फिर आंखों की पलकों को बंद करके इसे पलको के ऊपर रखे इससे आंखों का दर्द दूर हो जाएगा। 3. श

पित्त विकार और हृदय रोग तथा खून की कमी का घरेलू ईलाज

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फालसा फालसे का विशाल पेड़ होता है। यह बगीचों में पाया जाता है। उत्तर भारत में इसकी उत्पत्ति अधिक होती है। इसका फल पीपल के फल के बराबर होता है। इसको फालसा कहते हैं। यह मीठा होता है। गर्मी के दिनों में इसका शर्बत भी बनाकर पीते हैं।  विभिन्न रोगों में उपयोग :  1. पित्त विकार और हृदय रोग: पके फालसे के रस को पानी में मिलाकर, पिसी हुई सोंठ और शक्कर के साथ पिलाना चाहिए। पके फालसे के रस को पानी, सौंफ और चीनी मिलाकर सेवन करने से लाभ मिलता है। 2. लू का लगना: शहतूत और फालसे का शर्बत पीने से लू से बचा जा सकता है। फालसे के साथ सेंधानमक खाने से लू नहीं लगती है। 3. शीतपित्त: पित्त-विकार में पके फालसे के रस में पानी, सोंठ और चीनी मिलाकर पीना चाहिए।  4. मूत्ररोग: फालसा खाने व शर्बत पीने से भी मूत्र की जलन खत्म होती है।  5. गर्भ में मरे हुए बच्चे को निकालना: नाभि, बस्ति और योनि पर फालसे की जड़ का लेप करना चाहिए। इससे गर्भ में मरा हुआ बच्चा तुरन्त निकल जाता है।  6. शरीर की जलन: अगर शरीर में जलन हो तो फालसे के फल या शर्बत को सुबह-शाम सेवन करने से लाभ मिलता है। पके हुए फालसे को शक्कर के साथ खाने से शरीर की ग